किसी भू-भाग पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विविध मौसमों की औसत अवस्था उस भू-भाग की जलवायु कहलाती है। मौसम का तात्पर्य मुख्यतया छोटी अवधि, जैसे एक दिन, एक सप्ताह, एक माह अथवा इससे कुछ अधिक जबकि जलवायु एक लम्बी अवधि के दौरान किए गए अनुवीक्षणों के द्वारा निर्धारित दशाओं के औसत के साथ संबंधित है । जलवायु के अध्ययन में कई तत्त्व, जैसे तापमान, दबाव, आर्द्रता, वर्षा, वायुवेग, धूप की अवधि और कई अन्य कम महत्वपूर्ण तत्त्वों को शामिल किया जाता है। राजस्थान की जलवायु को नियन्त्रित करने वाले कारकों में अक्षांशीय स्थिति, जल से सापेक्षिक स्थिति, पर्वतीय अवरोध, ऊँचाई, प्रचलित हवाएँ तथा महाद्वीपीयता आदि महत्त्वपूर्ण कारक हैं। राजस्थान की जलवायु का अध्ययन करने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है
(i) राजस्थान राज्य में अरावली पर्वत श्रृंखला दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व में विस्तृत है। राजस्थान के दक्षिणी भागों से होकर कर्क रेखा गुजरती है।
(ii) राजस्थान की स्थिति 23°3′ व 30°12′ उत्तरी अक्षांशों में है। इन्हीं अक्षांशों में उत्तरी अरेबिया, साइबेरिया और मिस्र का कुछ भाग, उत्तरी सहारा और मैक्सिको के भाग स्थित हैं,जहाँ जलवायु की दशाएँ राजस्थान की अपेक्षा अधिक कठोर और प्रचण्ड हैं। भारत के उत्तरप्रदेश व प.बंगाल के अधिकांश भाग भी इन्हीं अक्षांशों के मध्य स्थित हैं लेकिन स्थानीय कारकों के फलस्वरूप जलवायु में पर्याप्त अन्तर है। अक्षांशीय स्थिति काफी हद तक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सूर्याभिताप और प्रचलित वायु की दिशाओं को निर्धारित करती है।
(ii) राजस्थान का दक्षिणी भाग कच्छ की खाड़ी से लगभग 225 कि.मी. और अरब सागर से 400 कि.मी. दूर है।
(iv) अरावली पर्वत को छोड़कर राजस्थान के अधिकांश भाग समुद्रतल से 370 मीटर से भी कम ऊँचे हैं।
जलवायु की दृष्टि से सम्पूर्ण भारत की मानसूनी दशाओं की अतिशयता के लिए राजस्थान की आन्तरिक अवस्थिति, वनस्पति रहित आवरण, मिट्टियों की प्रकृति और नग्न चट्टानों आदि को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। राजस्थान का पश्चिमी शष्क प्रदेश भारत का सबसे अधिक गर्म प्रदेश है।
(1) प्रदेश की लगभग सारी वर्षा गर्मियों में मानसूनी हवाओं से होती है। शीतकाल में बहत कम वर्षा, वह भी उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान में होती है।
(2) वर्षा की मात्रा व समय अनिश्चित है। प्रायः15 जून से 30 जून के मध्य वाष्पीय दवाएँ आ जाती हैं लेकिन वर्षा के अभाव में आए साल अकाल एवं सूखा पड़ता रहता है।
(3) वर्षा का वितरण एक समान नहीं है। वर्षा दक्षिणी-पूर्वी भाग में अधिक परन्तु उत्तरी-पश्चिमी भाग में बहुत कम होती है।
(4) वर्षा की मात्रा में पूर्व से पश्चिम की ओर क्रमश: कमी होती जाती है। जलवायु के आधार पर राजस्थान की ऋतुएँ
राजस्थान की जलवायु का अध्ययन मौसमी विषमताओं पर आधारित है। फिर भी जलवायु के आधार पर राजस्थान में वर्ष को तीन मुख्य परम्परागत ऋतुओं में बाँटा गया है
(1) ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून तक),
(2) वर्षा ऋतु (मध्य जून से सितम्बर तक),तथा
(3) शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी तक)।
भारत सरकार के मौसम कार्यालय ने शीत ऋतु को दो उपविभागों में विभक्त किया है-(i) मानसून प्रत्यावर्तन की ऋतु (अक्टूबर से मध्य दिसम्बर तक), तथा (ii) शीत ऋतु (दिसम्बर से फरवरी तक)।
(1) ग्रीष्म ऋत – ग्रीष्म ऋतु मार्च से आरंभ होती है। सूर्य के उत्तर की ओर अग्रसर होने पर तापमान में वृद्धि होती है । तापमान में वृद्धि के कारण वायुमण्डलीय दबाव निरन्तर गर्म सतह पर गिरने लगता है। अप्रेल में गर्म हवाएँ थार मरुस्थल को पार करके आती हैं इसलिए ये शुष्क और गर्म होती हैं। अप्रेल,मई माह में सूर्य लम्बवत् चमकता है अत: गर्मी बढ़ती जाती है। थार के मरुस्थल में आर्द्रता लगभग एक प्रतिशत तक गिर जाती है। इससे पौधे वृद्धि करने में असमर्थ होते हैं । यही कारण है कि यहाँ हरी वनस्पति नहीं पाई जाती है। यहाँ तापमान 40° से. से 45° से. तक चला जाता है। वातावरण की शुष्कता, स्वच्छ आकाश, मिट्टी की बलुई प्रकृति और वनस्पति के अभाव में रात्रि में तापमान अचानक गिर जाता है। यही कारण है कि यहाँ गर्मी के मौसम की रातें शीतल एवं सुहावनी होती हैं। इस समय श्री गंगानगर में उच्चतम तापमान 50° से., जोधपुर, बीकानेर व बाड़मेर में 49° से., जयपुर व कोटा में 48° से. और झालावाड़ में 47° से. तक पहुँच जाता है। कभी धूल के तूफान तापमान में अचानक गिरावट ले आते हैं। कभी-कभी तूफानों के बाद वर्षा भी होती है जिसके कारण तापमान गिर जाते हैं। शीतकाल में कभी-कभी पाला भी पड़ जाता है। इस समय अरावली के पश्चिम में तापमान लगभग 14° से.से 17° से.के बीच रहता है। स्थानीय ताप प्रचण्ड संवाहन धाराओं को जन्म देता है, जिससे चक्रवातीय तूफान आते हैं । सम्पूर्ण ऋतु में सापेक्षिक आर्द्रता प्रात:35 प्रतिशत से 60 प्रतिशत और दोपहर में 10 प्रतिशत से 30 प्रतिशत रहती है।
(2) वर्षा ऋतु – राजस्थान अपनी स्थिति के कारण बंगाल की खाड़ी से उठने वाले मानसून व अरब सागर की खाड़ी से उठने वाली मानसूनी हवाओं के रास्ते में आता है। लेकिन फिर भी राजस्था के पश्चिमी भू-भाग में काफी कम वर्षा होती है। राजस्थान में कम वर्षा के कारण निम्नलिरि हैं
दक्षिण-पूर्व से आने वाली हवाएँ उष्ण सागर पार करने के पश्चात् अत्यधिक गर्म भूमि पर आती हैं। इसलिए उनकी सापेक्षिक आर्द्रता 90 प्रतिशत से घटकर 50 प्रतिशत ही रह जाती है जिससे वर्षा की संभावना प्रायः समाप्त हो जाती है।
(ii) दक्षिणी-पूर्वी वायु धाराएँ पहले से ही अपनी आर्द्रता को गंगा के मैदान में ही समाप्त कर चुकी होती हैं।
(iii) राजस्थान में अरावली की श्रेणी का विस्तार हवाओं के समानान्तर होने व ऊंचाई कम होने से मानसूनी हवाएँ बिना वर्षा किए अबाध गति से निकल जाती हैं ।
राज्य में वर्षा जून से सितम्बर की अवधि में होती है तथा पूर्व से पश्चिम की ओर इसकी मात्रा कम होती जाती है। दक्षिण में स्थित आबू पर्वत राजस्थान में सबसे अधिक 150 से मी. वर्षा प्राप्त करता है। औसत वार्षिक वर्षा में भी काफी अन्तर पाया जाता है | यह भारत-पाक सीमा पर 10 से.मी..जैसलमेर में 20 से.मी. प्रदेश के पर्वी भाग में 35 सेमी.से 40 से.मी.के बीच रहता है। पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा कम होती जाती है। जैसे जोधपुर में 35 सेमी, जैसलमेर में 20 से.मी.। दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर भी यही प्रवृत्ति दिखाई देती है, जैसे बाड़मेर में 31 सेमी., बीकानेर में 30 से.मी., गंगानगर में 22 सेमी. आदि। राजस्थान में अधिकांश वर्षा जुलाई और अगस्त के महीनों में ही होती है।
(3) शीत ऋतु – शीत ऋतु को दो उपविभागों में विभक्त किया गया है-(अ) मानसून प्रत्यावर्तन की ऋतु (अक्टूबर से मध्य दिसम्बर तक), तथा (ब) शीत ऋतु (मध्य दिसम्बर से फरवरी तक)।
(अ) मानसून प्रत्यावर्तन की ऋतु – राजस्थान में अक्टूबर और नवम्बर महिनों के दौरान मानसून प्रत्यावर्तन के कारण हवाएँ काफी शांत, बहुत हल्की, अत्यधिक परिवर्तनशील होती हैं। इसलिए इस समय यहाँ न्यूनतम तापमान 11° से. से 18° से. के मध्य रहता है। नवम्बर में कुछ अधिक ठण्ड पड़ती है। आबू पर्वत का तापमान आसपास के क्षेत्रों से काफी कम होता है क्योंकि यह अधिक ऊँचाई पर स्थित है।
(ब) शीत ऋतु – राजस्थान में शीतकालीन चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर अग्रसर होते हैं। इस अवधि के दौरान पूरे प्रदेश में तापमान धीरे-धीरे कम होने लगता है। इस समय होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में ‘मावट’ कहते हैं। जनवरी मास का औसत तापमान उत्तरी भाग में 12° से.तथा दक्षिण में 15° से.के बीच रहता है । इस समय उत्तरी क्षेत्रों में शीत लहर के कारण तापमान कभी-कभी पाले के साथ ही हिमांक बिन्दु तक पहुँच जाता है।
राजस्थान के जलवायु प्रदेश-तापमान और वर्षा की मात्रा के आधार पर राजस्थान निम्न जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया जाता है
1. शुष्क जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश के अन्तर्गत जैसलमेर जिला, बाड़मेर जिले के उत्तरी भाग, जोधपुर जिले की फलौदी तहसील का पश्चिमी भाग, बीकानेर जिले का पश्चिमी भाग तथा गंगानगर जिले का दक्षिणी भाग शामिल है। इस प्रदेश में शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु की दशाएँ पायी जाती हैं। औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 34° से. अधिक तथा शीत ऋतु में 12° से. से 16° से. रहता है । वर्षा बहुत ही कम होती है । सुदूर पश्चिमी भागों में वषा 10 सेमी. से भी कम तथा इस प्रदेश के शेष भागों में 20 सेमी. से कम होती है। यहाँ का जलवायु अधिक शुष्क और कठोर है।
(2) अर्द्ध-शुष्क जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश के अन्तर्गत गंगानगर कानेर, जोधपुर, बाडमेर जिलों के पश्चिमी भाग सम्मिलित हैं। इस प्रदेश में वर्षा 20 सेमी से 40 सेमी तक होती है । वर्षा की प्रकृति अनिश्चित है तथा साथ ही तूफानी भी । इसलिए जब कभी भी वा होती है तो प्रायः बाढ़ें आ जाती हैं । इस प्रदेश में औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 32° से.से 36° से.तथा शीत ऋतु में 10° से.से 170 से. तक पाये जाते हैं। इस प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में शीत ऋतु छोटी व शुष्क होती है। यहाँ वनस्पति मख्यत: स्टैपी प्रकार की मिलती है जिसमें कांटेदार गाडियाँ तथा घासों की प्रधानता होती है।
(3) उप आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश के अन्तर्गत अलवर,जयपुर,अजमेर,झुन्झुनूं, सीकर,पाली व जालौर जिलों के पूर्वी भाग तथा टोंक भीलवाडा व सिरोही के उत्तरी-पश्चिमी भाग आते हैं। यह अर्द्ध-उष्ण आर्द्र प्रदेश है जिसमें वर्षा कम होती है। यह वर्षा की मात्रा भी वर्षा के कुछ महीनों तक ही सीमित है। इस प्रदेश में वर्षा 40 सेमी.से 60 से.मी.के बीच होती है। औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 280 से.से 340 से.तथा शीत ऋत में 12° से.उत्तरी क्षेत्रों में तथा 180 से.दक्षिणी भागों में रहता है । इस प्रदेश में स्टैपी वनस्पति पाई जाती है।
(4) आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश के अन्तर्गत भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, बूंदी, कोटा, राजसमन्द, उदयपुर जिले के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र, दक्षिणी-पूर्वी टोंक तथा उत्तरी चित्तौड़गढ़ के क्षेत्र शामिल हैं। यहाँ वर्षा 60 सेमी. से 80 से.मी.के बीच होती है । इस प्रकार की जलवायु में ग्रीष्म ऋतु में 320 से.से 340 से. तथा शीतऋतु में कुछ वर्षा चक्रवातों द्वारा हो जाती है । इस प्रदेश के क्षेत्रों पर पतझड़ वाले वृक्ष पाये जाते हैं।
(5) अति-आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश के अन्तर्गत दक्षिणी-पूर्वी कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाड़ा एवं उदयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी भाग तथा माउन्ट आबू के समीपवर्ती भू-भाग शामिल हैं। इस प्रदेश में वर्षा का औसत 80 से.मी. से लेकर 150 से.मी. तक पाया जाता है । ग्रीष्म ऋतु में भीषण गर्मी पड़ती है। वर्षा अधिकांशतः वर्षा ऋतु में होती है। शीत ऋत सखी व ठण्डी होती है। वनस्पति यहाँ मानसूनी सवाना प्रकार की मिलती है।
कोपेन के द्वारा वर्गीकरण – डॉ. ब्लाडिमिर कोपेन ने वनस्पति के आधार पर विश्व को अनेक जलवायु प्रदेशों में बाँटा है। इनके अनुसार वनस्पति के द्वारा ही किसी स्थान पर तापमान और वर्षा का प्रभाव ज्ञात किया जा सकता है । इन्होंने अपने वर्णन में सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया है। उनके अनुसार राजस्थान में निम्न जलवायु प्रदेश मिलते हैं
(i) Aw या उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस जलवायु प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में भीषण गर्मी पड़ती है तथा वर्षा भी अधिकतर ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीत ऋतु सूखी और ठण्डी होती है एवं अति ठण्डे मास का तापमान 180 से. से ऊपर रहता है। राजस्थान के डूंगरपर जिले का दक्षिणी भाग तथा बांसवाड़ा जिला इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत आते हैं। यह क्षेत्र वास्तव में शुष्क उष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों तथा सवाना तुल्य प्रदेश से बहुत कुछ साम्य रखते हैं । इस प्रदेश के क्षेत्रों पर मानसूनी पतझड़ वाले वृक्ष पाये जाते हैं।
(ii) Bshw जलवायु प्रदेश – यह अर्द्धशुष्क प्रदेश है। जाड़े की ऋतु शुष्क होती है। साथ ही ग्रीष्म ऋतु में भी वर्षा अधिक नहीं होती है । वनस्पति मुख्यतः स्टैपी प्रकार की है। कांटेदार झाडियाँ और घास यहाँ की विशेषता है । धरातलों के पश्चिमी भाग में स्थित जिले बाडमेर जालौर.जोधपुर,नागौर, चूरू,सीकर, झुन्झुनूं, दक्षिणी पूर्वी गंगानगर आदि इस जलवाय प्रदेश में आते हैं।
(iii) Bwhw जलवायु प्रदश – इस प्रदेश में शुष्क उष्ण मरुस्थलीय र शाए पाया जाता है। वर्षा बहुत ही कम होता है। इसके विपरीत वा जाधक होता है । इसलिए ये मरुस्थलीय प्रदेश बन गय ह । उत्तरी-पश्चिमी पाश्चमा बीकानेर और गगानगर जिले के पश्चिमा भाग इस जलवाय प्रदेश १ अथात इस प्रकार के प्रदेश राजस्थान के पश्चिमा भाग क थार मरुस्थल तक